दिल्ली में 7 किलो मेथ ज़ब्त: अंतरराष्ट्रीय ड्रग्स सिंडिकेट का भंडाफोड़
मामले का संक्षेप
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक समन्वित कार्रवाई में अंतरराष्ट्रीय ड्रग्स सिंडिकेट को पकड़ा। ऑपरेशन के दौरान करीब 7 किलो मेथाम्फेटामाइन (मेथ) बरामद हुई जिसकी अंतरराष्ट्रीय कीमत लगभग ₹21 करोड़ आँकी गई। कार्रवाई में कुल 6 आरोपी दिल्ली, ग्रेटर नोएडा और बेंगलुरु से गिरफ़्तार हुए। नेटवर्क शहरों के बीच डेड-ड्रॉप और ऐप-आधारित संचार का इस्तेमाल कर रहा था।
ऑपरेशन की शुरुआत कैसे हुई?
इनपुट एक ऐसे सप्लायर पर मिला जो वर्चुअल नंबर और मैसेजिंग ऐप्स से सौदे तय करता था। ट्रेसिंग में नाइजीरियाई नंबर का संकेत और मोहन गार्डन (दिल्ली) कनेक्शन मिला। शुरुआती दबिश में 64 ग्राम मेथ मिली; उसके बाद छतरपुर के कमरे से करीब 865 ग्राम और बरामद हुए। पूछताछ ने बेंगलुरु और केरल तक फैले हब-एंड-स्पोक मॉडल का संकेत दिया।
कौन-कौन गिरफ्तार हुए?
गिरफ्तारियों में दो विदेशी नागरिक और एक दंपत्ति शामिल बताए गए। भूमिकाएँ संक्षेप में:
- कथित सप्लायर/हैंडलर—जिनके ठिकाने और पहचान बदलते रहते थे।
- लॉजिस्टिक्स/कलेक्शन—शहरों के बीच पिक-अप व डिलीवरी की कड़ी।
- फाइनेंस/डिस्ट्रीब्यूशन—रिटेल तक माइक्रो-कंसाइनमेंट पहुँचाना।
सप्लाई चेन दिल्ली–बेंगलुरु–केरल कॉरिडोर पर सक्रिय थी और स्थानीय-अंतरराष्ट्रीय लिंक साथ-साथ काम कर रहे थे।
नेटवर्क कैसे काम करता था?
1) डेड-ड्रॉप और माइक्रो-कंसाइनमेंट
लोकेशन-आधारित छुपे पैकेट, अलग-अलग एजेंट—ताकि सीधे लिंक सिद्ध करना मुश्किल रहे।
2) एन्क्रिप्टेड संचार
डिस्पोज़ेबल सिम/वर्चुअल नंबर, नई प्रोफाइल; भुगतान में नकद, डिजिटल वॉलेट या हवाला जैसे चैनलों का मिश्रण।
3) लक्षित ग्राहक
कॉलेज के छात्र और आईटी प्रोफेशनल—तेज़ डिलीवरी और नाइटलाइफ़-डिमांड की वजह से नेटवर्क को आसान बाज़ार मिलता था।
बरामदगी, कीमत और सबूत
कुल मिलाकर करीब 7 किलो मेथ बरामद हुई जिसकी अंतरराष्ट्रीय कीमत ~₹21 करोड़ आँकी गई। बरामदगी अलग-अलग शहरों से हुई—जिससे बहु-शहर उपस्थिति स्पष्ट है।
जांच में डिजिटल चैट लॉग, UPI/कैश ट्रेल, पैकेजिंग सामग्री और CCTV क्लू अहम सबूत हैं। फॉरेंसिक शुद्धता/कटिंग एजेंट्स और सोर्सिंग पैटर्न की जाँच करेगा।
“हाई-प्योरिटी मेथ, छोटे पैकेट और क्विक-डिलीवरी—शहरी ड्रग मार्केट पहले से कहीं अधिक प्रोफेशनल हो चुका है।”
कानूनी धाराएं और सज़ा
एनडीपीएस अधिनियम, 1985 के तहत धारा 21/22 (निर्माण/बिक्री/खरीद/होल्डिंग) व धारा 29 (साज़िश/सहयोग) लागू होती हैं। वाणिज्यिक मात्रा होने पर 10–20 वर्ष तक की कठोर सज़ा और भारी जुर्माने का प्रावधान; ज़मानत सामान्यतः कठिन मानी जाती है। चेन-ऑफ-कस्टडी और फॉरेंसिक रिपोर्ट निर्णायक भूमिका निभाती हैं।
जांच का अगला चरण
अब फोकस सप्लाई-स्रोत, फाइनेंशियल ट्रेल और अंतरराष्ट्रीय लिंक पर है—CDR, बैंक/UPI स्टेटमेंट, किराये के एग्रीमेंट और डिवाइस इमेजिंग से नेटवर्क मैप तैयार होगा; ज़रूरत पर बहु-एजेंसी सहयोग और अंतरराष्ट्रीय सहायता भी ली जा सकती है।
समाज व बाजार पर असर
छात्रों/युवा पेशेवरों पर नशे के दुष्प्रभाव—लत, चिंता, अनिद्रा, हृदय जोखिम और सामाजिक-आर्थिक गिरावट। बड़े सिंडिकेट के गिरने पर अल्पकाल में सप्लाई बाधित/कीमतें ऊपर; पर रिप्लेसमेंट नेटवर्क उभर आते हैं—इसीलिए डिमांड-रिडक्शन (जागरूकता/De-addiction) और सप्लाई-सप्रेशन (कानूनी कार्रवाई) दोनों ज़रूरी।
जागरूकता: पहचानें और बचें
- अनजान पैकेट/ड्रॉप-लोकेशन या “किराये पर बैग/लॉकर” जैसे ऑफ़र से दूर रहें।
- “तेज़ मुनाफ़े” वाले कूरियर/डिलीवरी जॉब के बहाने ड्रग-कैरियर बनाने के केस बढ़ रहे हैं—सावधान रहें।
- संदिग्ध एक्सप्रेस-डिलीवरी, असामान्य कैश/क्रिप्टो भुगतान पर प्रश्न उठाएँ।
- कैंपस/होस्टल में अज्ञात पाउच/पाउडर दिखे तो तुरंत प्रशासन/पुलिस को सूचित करें—खुद न छुएँ।
- हेल्पलाइन/डी-एडिक्शन सेवाओं की जानकारी मित्रों/परिवार से साझा करें; सहायता लेने में हिचकिचाएँ नहीं।
टाइमलाइन
- प्रारंभिक इनपुट: संदिग्ध सप्लायर; विदेशी नंबर के संकेत।
- पहली बरामदगी: 64 ग्राम मेथ; छतरपुर से ~865 ग्राम और।
- नेटवर्क खुलासा: बेंगलुरु/केरल तक फैला हब-एंड-स्पोक मॉडल।
- समेकित कार्रवाई: दिल्ली, ग्रेटर नोएडा, बेंगलुरु में छापे; कुल ~7 किलो बरामद; 6 गिरफ्तार।
- वर्तमान स्थिति: फॉरेंसिक, डिजिटल एविडेंस और फाइनेंशियल ट्रेल की गहन जांच।
निष्कर्ष
यह केस दिखाता है कि संगठित ड्रग नेटवर्क शहरों में कितने टेक-सैवी तरीके से काम करते हैं और पुलिस की इंटेलिजेंस-ड्रिवन रणनीतियाँ उन्हें तोड़ने में कारगर हैं। दीर्घकालिक सफलता के लिए कानून-प्रवर्तन के साथ समुदाय-आधारित जागरूकता, कैंपस साझेदारी और पुनर्वास कार्यक्रम समान रूप से ज़रूरी हैं।
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