📰 जनता की गाढ़ी कमाई कैसे नेता लूट रहे हैं?
📌 जनता से वादे, हकीकत में धोखा
हर चुनाव से पहले नेता जनता से वादों की झड़ी लगा देते हैं —
- मुफ्त शिक्षा
- बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ
- बेरोज़गारों के लिए नौकरी
- किसानों के लिए कर्ज़ माफी
लेकिन चुनाव ख़त्म होते ही ये सारे वादे धीरे-धीरे धूल फांकने लगते हैं। सत्ता में आते ही जनता की गाढ़ी कमाई से भरे सरकारी खज़ाने का इस्तेमाल अपने ऐशो-आराम और भ्रष्टाचार में किया जाने लगता है।
💰 जनता का पैसा कहाँ जा रहा है?
- योजनाओं के नाम पर अरबों रुपये मंज़ूर होते हैं, लेकिन ज़मीन पर नतीजा नगण्य।
- सड़क, पुल, अस्पताल के ठेके ऐसी कंपनियों को दिए जाते हैं जो नेताओं के करीबी हों।
- घोटालों और कमीशनखोरी से सरकारी फंड का बड़ा हिस्सा जनता तक पहुँचने से पहले ही “कट” हो जाता है।
👮 भ्रष्टाचार के बड़े खेल
- ठेकेदारी सिस्टम → छोटे कामों की लागत बढ़ाकर करोड़ों के बिल पास किए जाते हैं।
- नौकरियों में रिश्वत → बेरोज़गार युवाओं से नौकरी देने के नाम पर लाखों की वसूली।
- फर्जी योजनाएँ → कागज़ पर स्कूल, सड़क, अस्पताल दिखाए जाते हैं लेकिन असल में कुछ भी मौजूद नहीं।
😞 इसका असर जनता पर
- किसानों को समय पर खाद और बीज नहीं मिलते।
- बेरोज़गारों के लिए नौकरी नहीं निकलती।
- सरकारी अस्पताल दवाइयों के बिना चलते हैं।
- गाँव और कस्बों में बुनियादी सुविधाएँ बदतर हो रही हैं।
🗣️ जनता को क्या करना चाहिए?
- नेताओं से हिसाब माँगना चाहिए — सिर्फ़ वोट लेने तक ही रिश्ता न रहे।
- RTI (सूचना का अधिकार) का इस्तेमाल करें और योजनाओं का पूरा ब्योरा निकालें।
- सोशल मीडिया और गाँव/कस्बे की पंचायतों में सवाल उठाएँ।
- अगर गड़बड़ी दिखे तो स्थानीय प्रशासन और मीडिया तक आवाज़ पहुँचाएँ।
👉 निष्कर्ष
नेताओं का काम जनता की सेवा करना है, न कि जनता की गाढ़ी कमाई लूटना। जब तक जनता सवाल नहीं पूछेगी, तब तक यह लूट बंद नहीं होगी। इसलिए हर नागरिक का फ़र्ज़ है कि जागरूक बने और अपने अधिकारों की रक्षा करे।
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